सोमनाथ मंदिर की विस्तृत जानकारी Somnath Temple in Hindi - GYAN OR JANKARI

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बुधवार, 15 जुलाई 2020

सोमनाथ मंदिर की विस्तृत जानकारी Somnath Temple in Hindi

सोमनाथ मंदिर की विस्तृत जानकारी Somnath Temple in Hindi


सोमनाथ मंदिर का महत्व

सोमनाथ मंदिर हिन्दुधर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है, सोमनाथ महादेव ज्योतिर्लिंग को भारत के 12 प्रमुख ज्योर्तिर्लिंगों में से सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग माना जाता है। यह ज्योतिर्लिंग भारत के सबसे प्राचीनतम तीर्थस्थानों में से एक है।  पुराणों के अनुसार सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर का निर्माण स्वयं चंद्रदेव ने स्वर्ण से किया था, जिसका उल्लेख ऋग्वेद, शिवपुराण, महाभारत और कई अन्य धार्मिक ग्रंथो में किया गया है।

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग जहाँ स्थित है यह क्षेत्र पहले प्रभास क्षेत्र नाम से जाना जाता था और यह वही क्षेत्र है जहाँ भगवान् श्रीकृष्ण ने यदुवंश का नाश होने के बाद अपनी देह का त्याग किया था।

सोमनाथ मंदिर भारतवर्ष के गुजरात राज्य के सौराष्ट्र क्षेत्र में अरब सागर के किनारे स्थित है, प्राचीनकाल में यह मंदिर अत्यंत वैभवशाली था जिसकी भव्यता आश्चर्यजनक थी, इस मंदिर में स्थित ज्योतिर्लिंग चुंबकीय शक्ति द्वारा हवा में झूलता था, इस मंदिर के वैभव और अकूत सम्पदा को देखकर मुस्लिम आक्रांताओ द्वारा इस मंदिर को कई बार लुटा गया और नस्ट किया गया। परन्तु हिन्दू राजाओं और भक्तों में इस मंदिर के प्रति अथाह श्रद्धा होने के कारण हर बार इस मंदिर का पुनःनिर्माण उसी भव्यता, वैभव और श्रद्धा के साथ किया गया।

वर्तमान में जो मंदिर अस्तित्व में है इसका पुनर्निर्माण स्वतंत्र भारत के प्रथम उपप्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल के द्वारा किया गया था,  भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने इस मंदिर के विषय में कहा था की यह मंदिर विनाश के ऊपर निर्माण की जीत का प्रतिक है।

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सोमनाथ महादेव ज्योतिर्लिंग

सोमनाथ महादेव की पौराणिक कहानी

पुराणों में वर्णित सोमनाथ महादेव की कथा के अनुसार, प्राचीन काल में प्रजापति दक्ष की 27 पुत्रियाँ थी। प्रजापति दक्ष ने उन सभी का विवाह चंद्रदेव से किया था। परन्तु चंद्रदेव उन सब में से रोहिणी को सबसे अधिक पसंद करते थे और उनके साथ ही सबसे अधिक समय बिताते थे। यह सब देख कर चंद्रदेव की अन्य पत्नियाँ  बहुत दुखी रहा करती थी। उन सभी ने इस बात को लेकर अपने पिता दक्ष से कई बार चंद्रदेव की शिकायत भी की थी। और उनके पिता प्रजापति दक्ष ने चंद्रदेव को कई बार समझाया, परन्तु चंद्रदेव नहीं माने और पहले की ही तरह केवल रोहिणी के संग ही अधिक समय व्यतीत करते रहे। अंततः प्रजापति दक्ष ने चंद्रदेव को क्षय रोग हो जाने का श्राप दे दिया, और चंद्रदेव तुरंत ही क्षय रोग से ग्रसित हो गए।

क्षयरोग से ग्रसित होने के बाद चंद्रदेव का समस्त सौन्दर्य और चमक नस्ट हो गयी और इससे चंद्रदेव अत्यंत दुखी हो गए। क्षयरोग से मुक्त होने के लिए चंद्रदेव अन्य देवताओ को साथ में लेकर ब्रह्मदेव के पास पहुंचे और अपने रोग की सारी कथा सुनाई । ब्रह्मदेव ने चंद्रदेव को क्षयरोग से मुक्त होने के लिए भगवान् शिव की आराधना करने को कहा।

ब्रह्माजी से आज्ञा पाकर चंद्रदेव ने भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमी तट पर सागर किनारे एक शिवलिंग बनाकर भगवान् शिव की आराधना शुरू की, चंद्रदेव ने कठोर तपस्या करते हुए भगवान शिव के महामृत्युंजय मंत्र का 10 करोड़ बार जप किया। चंद्रदेव की कठोर तपस्या से भगवान् शिव प्रसन्न हो गए और प्रकट होकर चंद्रदेव से वरदान मांगने को कहा।

चंद्रदेव ने भगवान् शिव से उन्हें प्रजापति दक्ष के श्राप के मुक्त करने की विनती की, भगवान् शिव ने कहा दक्ष के श्राप से पूरी तरह मुक्ति प्राप्त नहीं की जा सकती परन्तु मै तुम्हे आशीर्वाद देता हूँ की तुम्हारी चमक कृष्ण पक्ष में   धीरे धीरे क्षीण होगी और उसी तरह शुक्ल पक्ष में धीरे धीरे बढ़ती जाएगी।

भगवान् शिव से वरदान प्राप्त कर चंद्रदेव को संतोष की प्राप्ति हुई, साथ ही चंद्रदेव ने भगवान् शिव से प्रार्थना की, की वे लोगो के कल्याण के लिए सदा के लिए उसी शिवलिंग में माता पार्वती के साथ निवास करें जिसकी उन्होंने पूजा की थी, चंद्रदेव की प्रार्थना स्वीकार करके भगवान् शिव उस शिवलिंग में माता पार्वती के साथ निवास करने लगे।

चंद्रदेव को सोम भी कहा जाता है और चंद्रदेव के आग्रह पर ही भगवान् शिव ने उस शिवलिंग में निवास करना स्वीकार किया था, इसलिए यह शिवलिंग सोमनाथ महादेव के नाम से प्रख्यात हुआ।


सोमनाथ महादेव का इतिहास

पौराणिक हिन्दूग्रंथो के अनुसार सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है, तथा ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार भी इसा से पूर्व सोमनाथ मंदिर के स्थान पर एक भव्य मंदिर होने के प्रमाण मिलतें हैं।

ऐतिहासिक दस्तावेजों में सोमनाथ मंदिर को कई बार मुस्लिम आक्रांताओ द्वारा तोड़े और लुटे जाने तथा हिन्दू शासकों द्वारा हर बार इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराये जाने के प्रमाण मिलते है।


ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार सोमनाथ मंदिर का सर्वप्रथम निर्माण किसने और कब करवाया यह अज्ञात है,  दूसरी बार इस मंदिर का पुनःनिर्माण 649 ईस्वी में वैल्लभी के यादव राजाओं ने करवाया, उस मंदिर को 725 ईस्वी में सिंध का सूबेदार अल जुनैद ने राजस्थान और गुजरात में लूटपाट कर वापस लौटते समय तुड़वा दिया।

815 ईस्वी में प्रतिहार राजा नागभट्ट द्वितीय ने उसी स्थान पर लाल बलुआ पत्थरों से एक विशाल और अति भव्य मंदिर का निर्माण करवाया। इस मंदिर की कीर्ति और वैभव के किस्से दूर दूर तक फैले थे जिनका वर्णन उस समय के अरब यात्री अल बेरुनी ने अपने भारत यात्रा के वृतांत में भी किया था।

अल बेरुनी के यात्रा वृतांत से प्रभावित होकर गजनी के मुस्लिम शासक महमूद गजनवी ने 1025 ईस्वी में सोमनाथ मंदिर की सम्पदा लूटने के लिए आक्रमण किया। महमूद गजनवी 5000 सैनिकों को लेकर मंदिर पंहुचा उस समय मंदिर में 25000 लोग पूजा कर रहे थे। महमूद गजनवी ने उन सभी निहत्ते लोगो पर हमला कर दिया और लगभग सभी लोगों को क्रूरता से मार दिया। इतिहासकरों के अनुसार महमूद गजनवी ने उस समय सोमनाथ मंदिर से बेहिसाब सम्पदा लूटी थी, यह सम्पदा इतनी अधिक थी की वह अपने साथ लाये गए हजारों घोड़ों और ऊंटों पर जितना लाद के ले जा सकता था वह ले गया और बाकी को उसे वहीँ छोड़ना पड़ा। लूट के धन के अलावा वह हजारों स्त्रियों और बच्चो को भी गुलाम बनाकर अपने साथ ले गया।

इसके बाद गुजरात के राजा भीमदेव और मालवा के राजा भोज ने इस मंदिर का पुनःनिर्माण करवाया।  1096 ईस्वी में सिद्धराज ने इस मंदिर के पुननिर्माण के कार्य को आगे बढ़ाया। 1168 ईस्वी में राजा कुमारपाल ने इस मंदिर को विस्तार दिया और इस मंदिर में अनेको रत्न जड़ित करके इसे भव्यता प्रदान की। 

1299 ईस्वी में  दिल्ली के शासक सुल्तान अलाउदीन खिलजी ने गुजरात पर आक्रमण किया और सोमनाथ मंदिर को नस्ट कर उसकी सम्पदा लूट कर ले गया। उसके बाद 1308 ईस्वी में सौराष्ट्र के चूडासामा राजा महिपाल प्रथम ने फिर से इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाय, तथा उसके पुत्र खेंगरा ने 1351 में इस मंदिर में एक भव्य शिवलिंग स्थापित किया ।

1395 ईस्वी में गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर शाह प्रथम जिसे जफ़र खान भी कहा जाता था ने सोमनाथ मंदिर को फिर से लूट कर  नस्ट कर दिया। तथा 1451 ईस्वी में सुल्तान महमूद बेगड़ा ने मंदिर को अपवित्र किया। जिसके बाद हिन्दू राजाओं द्वारा फिर से इस मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया।

1665 ईस्वी में मुग़ल सुल्तान औरंगजेब ने सोमनाथ मंदिर को नस्ट करवा दिया, इसके बाद भी जब हिन्दुओ ने मंदिर में पूजा करना नहीं छोड़ा, तो 1702 ईस्वी में औरंगजेब सेना भेजकर पूजा कर रहे हजारों लोगो को मार डाला और एक बार फिर सोमनाथ मंदिर को नस्ट करवा दिया।

औरंगजेब के पतन के बाद सौराष्ट्र और भारत के अधिकांश हिस्सों पर मराठों का अधिकार हो गया, तब 1782 ईस्वी में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने मुख्य मंदिर के निकट ही एक सोमनाथ महादेव मंदिर का निर्माण करवाया।

इसके बाद भारत को अंग्रजो से आजादी मिलने के पश्चात भारत के प्रथम उपप्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल जिन्हे लौह पुरुष भी कहा जाता है उन्होंने मुख्य मंदिर के स्थान पर एक अतिभव्य सोमनाथ मंदिर का निर्माण करवाया जो आज वर्तमान में अस्तित्व में है। 11 मई 1951 ईस्वी को इस मंदिर का निर्माण कार्य सरदार वल्लभ भाई पटेल के निधन के पश्चात पूर्ण हुआ था, उस दिन भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद इस मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा करके इस मंदिर का उदघाटन किया था और कहा था की यह मंदिर विनाश पर निर्माण की जीत का प्रतिक है।

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सोमनाथ मंदिर

आज सोमनाथ महादेव मंदिर भारत के सबसे प्रमुख मंदिरों में से एक है, यहां महाशिवरात्रि और अन्य त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाये जाते है , यहां हर साल देश और विदेशों से 1 करोड़ से अधिक श्रद्धालु भगवान शिव के दर्शन करने आते है।

सोमनाथ मंदिर की वास्तुकला

सोमनाथ महादेव मंदिर को चालुक्य स्थापत्य वास्तुशिल्प के आधार पर बनाया गया है, जिसकी जटिल और विस्तृत नक्काशी असाधारण नजर आती है। मंदिर की दीवारों पर पत्थरों में ऐसी अनगिनत मूर्तियाँ उकेरी गयी है जो देखने में जीवंत दिखाई देती है। जिन्हें देखने के लिए देश और विदेश से लोग आते है।

यह मंदिर सात मंजिलो में बना है जिसकी उचाई 155 फ़ीट है, इस मंदिर के सबसे ऊपर पत्थर से एक कलश का निर्माण किया गया है केवल इसी कलश का वजन 10 टन है, इस मंदिर के शिखर पर लगी ध्वजा की लम्बाई 37 फुट है।  मंदिर के प्रवेश द्वार के पास एक फोटो गैलरी बनाई गई है जिसमें मंदिर के खंडहर, उत्खनन और जीर्णोद्धार के तस्वीरें है।

भीतर से यहाँ मंदिर तीन भागो में विभजित किया गया है।  मंदिर में प्रवेश करने पर नृत्यमंडप आता है, उसके आगे बढ़ने पर सभा मंडप स्थित है जिसे सभा भवन भी कहतें है और अंत में शिखर के नीचे गर्भगृह स्थित है जिसमे ज्योतिर्लिंग स्थित है।

सोमनाथ महादेव मंदिर के पास ही इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर के द्वारा बनवाया गया शिव मंदिर भी स्थित है जिसका निर्माण 1782 में करवाया गया था।