श्री तनोट माता मंदिर जैसलमेर की विस्तृत जानकारी Tanot Mata Mandir Jaisalmer
श्री तनोट माता मंदिर परिचय
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श्री तनोट माता |
श्री तनोट माता का इतिहास History of Sri Tanot Mata in Hindi
श्री तनोट माता को श्री हिंगलाज माता का ही एक रूप माना जाता है, तथा तनोट माता को आवड माता के नाम से भी जाना जाता है। श्री तनोट माता का इतिहास 1200 साल अधिक पुराना है। आठवीं शताब्दी में राजस्थान के माड़ प्रदेश (वर्तमान जैसलमेर जिला) के चेलक नामक गांव में मामड़िया नाम के चारण रहते थे, उनके कोई संतान नहीं थी इसलिए संतान प्राप्त करने के लिए उन्होंने श्री हिंगलाज माता शक्तिपीठ (वर्तमान में पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्त में स्थित) की सात बार पैदल यात्रा की। जिससे प्रसन्न होकर श्री हिंगलाज माता ने उन्हें स्वप्न में दर्शन दिए और उनकी इच्छा पूछी, तब मामड़िया जी ने कहा मेरी इच्छा है की आप मेरे घर में जन्म लें, तब श्री हिंगलाज माता ने प्रसन्न होकर कहा ऐसा ही होगा।
विक्रम संवत 808 (751 ईस्वी) चैत्र सुदी नवमी मंगलवार के दिन, मामड़िया जी के घर श्री हिंगलाज माता ने एक कन्या के रूप में जन्म लिया, जिसका नाम आवड देवी रखा गया, यह कन्या अत्यंत चमत्कारी थी, इन्होने बचपन से ही अनेक चमत्कार दिखने शुरू कर दिए, बाद में यही कन्या श्री तनोट राय माता के नाम प्रसिद्ध हुई। श्री तनोट माता (आवड देवी) के बाद मामड़िया जी को 6 और पुत्रियों की प्राप्ति हुई, जिनका नाम क्रमशः आशी, सेसी, गेहली, होल, रूप तथा लाग था।
श्री तनोट माता की कृपा से माड़ प्रदेश के भाटी राजपूतों ने हूणों के आक्रमण से माड़ प्रदेश की रक्षा की जिसके बाद भाटी राजपूतो का माड़ प्रदेश में सुद्रढ़ राज्य स्थापित हो गया। तनोट के राजा तनुराव भाटी ने विक्रम संवत 847 (790 ईस्वी) को तनोट गढ़ की नींव रखी, तथा विक्रम संवत 888 (831 ईस्वी) में तनोट दुर्ग और श्री तनोट माता के मंदिर की प्रतिष्ठा करवाई थी।
श्री तनोट माता मंदिर और भारत-पाकिस्तान का युद्ध Sri Tanot
Mata Temple and Indo-Pakistan War in Hindi
1965 में भारत और पाकिस्तान में युद्ध छिड़ गया था, इस युद्ध में पाकिस्तान ने जैसलमेर के रस्ते से भारत पर आक्रमण किया। इस युद्ध में पाकिस्तान ने लड़ाकू हवाई जहाजों और तोपों के द्वारा श्री तनोट माता के मंदिर पर 3000 से अधिक बम गिराए, लेकिन उनमे से एक भी बम नहीं फटा और मंदिर को खरोंच तक नहीं आयी। मंदिर का यह चमत्कार देख कर भारतीय सैनिको में जोश भर गया, जिसके बाद भारतीय सेना ने आसानी से पाकिस्तानी सेना को हरा दिया और भारत इस युद्ध को जीत गया।
इस युद्ध में श्री तनोट माता के चमत्कारों से पाकिस्तानी सेना भी आश्चर्य में पड़ गयी थी, उनके अनुसार जब भी वे हवाई जहाज से मंदिर को निशाना बनाकर बम गिरते थे तो उन्हें मंदिर के स्थान पर एक तालाब दिखाई देता था, जिसके किनारे पर एक छोटी बच्ची बैठी रहती थी। 1965 के युद्ध के बाद श्री तनोट माता के चमत्कारों के आगे नतमस्तक होकर पाकिस्तानी सेना के ब्रिगेडियर शाहनवाज खान ने भारत सरकार से अनुमति लेकर इस मंदिर में देवी के दर्शन किये और एक चांदी छत्र चढ़ाया। ब्रिगेडियर शाहनवाज खान के द्वारा चढ़ाया गया वह छत्र आज भी मंदिर परिसर में भक्तो के दर्शन के लिए रखा हुआ है।
1971 में पुनः भारत और पाकिस्तान में युद्ध हुआ, इस युद्ध में पाकिस्तान ने फिर से जैसलमेर के ओर से हमला किया, इस बार पाकिस्तान ने श्री तनोट माता मंदिर से कुछ दुरी स्थित लोंगेवाला गांव पर हमला किया, पाकिस्तानी सेना ने रात में अचानक पूरी टैंक रेजिमेंट के साथ इस गांव पर हमला किया था, उनके मुकाबले में भारतीय सेना की केवल 120 जवानो की एक कंपनी तैनात थी। लेकिन श्री तनोट माता के चमत्कार से 120 भारतीय जवानो की उस कंपनी ने पाकिस्तान की पूरी टैंक रेजिमेंट को धूल चटा दी थी, और लोंगेवाला गांव को पाकिस्तानी सेना के टैंको का कब्रगाह बना दिया था।
लोंगेवाला की जीत के बाद भारतीय सेना के द्वारा श्री तनोट माता मंदिर परिसर में एक विजय स्तंभ निर्माण करवाया गया, जहाँ हर वर्ष 16 दिसंबर को उत्सव मनाया जाता है।
इस युद्ध के बाद भारतीय सेना की आस्था इस मंदिर में और अधिक बढ़ गयी, जिसके बाद इस मंदिर के देखरेख का जिम्मा BSF ने अपने हाथों में ले लिया। इस मंदिर में देश और विदेश के भक्तों की भी गहरी आस्था है। नवरात्रों के दौरान बड़ी संख्या में भक्त इस मंदिर में श्री तनोट माता के दर्शन करने पहुंचते है। श्री तनोट माता को रुमाल वाली देवी के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर में आने वाले भक्त मंदिर में रुमाल बांधते है और श्री तनोट माता से मन्नत माँगतें है, मन्नत पूरी होने पर भक्त पुनः मंदिर आते है और देवी के प्रति आभार व्यक्त करतें है।
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