श्री रामेश्वरम मंदिर | श्री रामानाथास्वामी मंदिर का महत्त्व कहानी और वास्तुशिल्प - GYAN OR JANKARI

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सोमवार, 7 दिसंबर 2020

श्री रामेश्वरम मंदिर | श्री रामानाथास्वामी मंदिर का महत्त्व कहानी और वास्तुशिल्प

 श्री रामेश्वरम मंदिर | श्री रामानाथास्वामी मंदिर का महत्त्व, कहानी और वास्तुशिल्प


श्री रामेश्वरम मंदिर का महत्त्व

श्री रामेश्वरम मंदिर भारत के तमिलनाडु राज्य के रामेश्वरम में स्थित अत्यंत प्रसिद्ध हिन्दू मंदिर है। यह मंदिर भगवान शिव और भगवान विष्णु के अवतार श्री राम को समर्पित है, इसलिए इस मंदिर में शैववाद और वैष्णववाद का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। श्री रामेश्वरम मंदिर की गिनती हिन्दुओ के सबसे पवित्र चार धाम मंदिरों और बारह ज्योतिर्लिंग मंदिरों में होती है। चार धाम मंदिरों में श्री रामेश्वरम मंदिर के अलावा श्री बद्रीनाथ, श्री द्वारकाधीश और श्री जगन्नाथपुरी मंदिरों की गिनती होती है। श्री रामेश्वरम को उत्तर भारत में स्थित काशी के समान ही मान्यता प्राप्त है। इस मंदिर में मुख्य रूप से शिवलिंग की पूजा की जाती है, जिसे श्री रामेश्वरम और श्री रामानाथास्वामी कहा जाता है। इस शिवलिंग की स्थापना भगवान श्री राम ने त्रेता युग में लंका पर चढ़ाई करने से पहले थी, इस शिवलिंग की पूजा करके भगवान श्री राम ने भगवान शिव से युद्ध में विजय का आशीर्वाद प्राप्त किया था। दक्षिण भारत में इस मंदिर को रामानाथास्वामी मंदिर कहा जाता है, जबकि उत्तर भारत में इस मंदिर को रामेश्वरम मंदिर के नाम से जाना जाता है।

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श्री रामेश्वरम मंदिर

श्री रामेश्वरम मंदिर की कहानी 

रामायण के अनुसार भगवान श्री राम के वनवास के दौरान लंका के राजा रावण ने श्री राम की धर्मपत्नी देवी सीता का धोके से अपहरण कर लिया और अपने साथ लंका ले गया। लंका भारतवर्ष की सिमा के आगे उस पार समुद्र के बिच स्थित एक देश है। जब भगवान राम को ज्ञात हुआ की रावण देवी सीता को लंका के गया है, तब श्री राम रावण से युद्ध करने के लिए सेना लेकर समुद्र तट पर पहुंचे। रावण एक साधारण राक्षस नहीं था, वह बहुत बलवान होने के साथ-साथ ब्रह्मा जी के पुत्र महर्षि पुलस्त्य का वंशज था, जिसके कारण उसका सम्बन्ध ब्राह्मण कुल से भी था। इसके अलावा रावण एक बहुत बड़ा शिव भक्त भी था। इसलिए भगवान श्री राम ने रावण से युद्ध करने से पहले समुद्र तट पर एक शिवलिंग स्थापित किया, और भगवान शिव की आराधना की। श्री राम की आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और श्री राम को युद्ध में विजय का आशीर्वाद दिया। तब भगवान श्री राम ने भगवान शिव से से प्रार्थना करी, की आप लोगो के कल्याण के लिए इस शिवलिंग में सदा निवास कीजिये। भगवान शिव ने श्री राम की प्रार्थना को सहर्ष स्वीकार कर लिया और उन्होंने श्री राम द्वारा बनाये गए शिवलिंग का नाम रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग रखा और ज्योतिरूप में उस शिवलिंग में निवास करने लगे, तभी से इस शिवलिंग को श्री रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है। 

 

श्री रामेश्वरम मंदिर की अवस्थिति 

श्री रामेश्वरम मंदिर भारत के तमिलनाडु राज्य के रामनाथपुरम जिले में स्थित है, यह मंदिर भारत की मुख्य भूमि से कुछ दुरी पर समुद्र में एक द्वीप पर स्थित है। इस द्वीप का आकर शंख के समान है, यह चारो ओर से हिन्द महासागर और बंगाल की खाड़ी से घिरा है, यह द्वीप रामनाथपुरम जिले का ही हिस्सा है। बहुत पहले यह द्वीप भारत की मुख्य भूमि से जुड़ा हुआ था, कालांतर में सागर की लहरों ने इसे मुख्य भूमि से जोड़ने वाली कड़ी को काट दिया। आज इस द्वीप पर पहुंचने के लिए दो पुल बने हुए हैं, एक सड़क मार्ग के लिए तथा दूसरा रेलवे का पम्बन ब्रिज बना हुआ है, जिस पर से होकर रेल द्वारा इस द्वीप पर पंहुचा जा सकता है, इसके अलावा नाव (बोट) के द्वारा भी इस द्वीप पर पंहुचा जा सकता है। इस द्वीप के धनुष्कोटि नमक स्थान पर भगवान श्री राम ने रामसेतु  बनाया था जो आगे श्रीलंका के मन्नार द्वीप तक जाता है। 

 

श्री रामेश्वरम मंदिर का वास्तुशिल्प 

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रामेश्वरम मंदिर का विश्व प्रसिद्ध गलियारा

श्री रामेश्वरम मंदिर भारतीय वास्तुकला का एक अद्भुत नमूना है, यह मंदिर 15 एकड़ क्षेत्र में फैला है, इस मंदिर के चार मुख्य द्वार है, जो पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण दिशाओं में बने हुए है। इन द्वारों के ऊपर भव्य गोपुरम बने हुए है, पश्चिम, उत्तर, और दक्षिण द्वारों के गोपुरम पांच मंजिलों में बने है जिनकी उचाई लगभग 78 फ़ीट है,  पूर्वी द्वार पर बना गोपुरम 9 मंजिलों में बना है जिसकी उचाई 126 फ़ीट है। पूरा मंदिर परिसर ऊंची चारदीवारी से घिरा है। इस मंदिर में एक विशालकाय नंदी प्रतिमा स्थित है, जिसकी उचाई 18 फ़ीट और लम्बाई 22 फ़ीट है। मंदिर में शिवलिंग की परिक्रमा करने के लिए तीन तरफ गलियारे बने हुए है, इन गलियारों की कुल लम्बाई 3850 फ़ीट है, यह गलियारे दुनिया के सबसे लम्बे गलियारे हैं। इन गलियारों की उचाई 30 फ़ीट से अधिक है। इन गलियारों में 1200 से अधिक भव्य और नक्काशीदार खंबे बने है, जिन्हें ग्रेनाइट पत्थर  बनाया गया है। गलियारों के दोनों तरफ पांच फ़ीट ऊंचा और आठ फ़ीट चौड़ा चबूतरा बना है। श्री रामनाथस्वामी (भगवान शिव) और पार्वतिवर्धनी (देवी पार्वती) के लिए अलग अलग मंदिर बने है, जिनके बिच में एक गलियारा स्थित है। गर्भगृह के अंदर दो शिवलिंग  स्थापित है, पहला मुख्य शिवलिंग रेत से निर्मित है, जिन्हें रामानाथास्वामी कहा जाता है। दूसरा शिवलिंग श्री हनुमान जी द्वारा कैलाश पर्वत से लाया गया था, जिन्हें विश्वलिंगम कहा जाता है। भगवान श्री राम के निर्देश के अनुसार इस मंदिर में पहले श्री हनुमान द्वारा लाये गए विश्वलिंगम की पूजा की जाती है, बाद में मुख्य शिवलिंग की पूजा की जाती है, यह परम्परा आज भी जारी है। इस मंदिर के अंदर कई मंडप बने हुए है, जिनके नाम अनूपु मंडपम, सुक्रवारा मंडपम, सेतुपति मंडपम, कल्याण मंडपम, और नंदी मंडपम है। इस मंदिर को बनाने के लिए कई लाख टन पत्थरों का प्रयोग किया गया है। पुरे मंदिर परिसर में जटिल और अद्भुत नक्काशी की गयी है, जो देखने में अति सुन्दर प्रतीत होती है। 
 
 

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