श्री द्वारकाधीश मंदिर का महत्व, वास्तुशिल्प और अन्य जानकारी
श्री द्वारकाधीश मंदिर का महत्व
श्री द्वारकाधीश मंदिर भगवान श्री कृष्ण को समर्पित एक विश्व प्रसिद्ध हिन्दू मंदिर है। यह मंदिर भारत के गुजरात राज्य के द्वारका नगर के पश्चिमी तट पर अरब सागर के किनारे और गोमती नदी के तट पर स्थित है, इस स्थान पर गोमती नदी अरब सागर में मिलती है। श्री द्वारकाधीश मंदिर में भगवान श्री कृष्ण की पूजा द्वारकाधीश के रूप में की जाती है, जिसका अर्थ होता है "द्वारका के राजा"। श्री द्वारकाधीश मंदिर हिन्दुओं के सबसे पवित्र चार धाम मंदिरों में से एक है, अन्य तीन मंदिर श्री बद्रीनाथ मंदिर, श्री रामेश्वरम मंदिर और श्री जगन्नाथ मंदिर है। श्री द्वारकाधीश मंदिर को त्रिलोक्या जगत मंदिर भी कहा जाता है। श्री कृष्ण का यह मंदिर सात पुरियों (अयोध्या, मथुरा, माया, काशी, अवंतिका, कांचीपुरम और द्वारका) और भगवान विष्णु के 108 मंदिरों में से एक है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है की यह मंदिर तीनों लोकों में सबसे सुंदर मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण भगवान श्री कृष्ण के पड़पोते वज्रनाभ ने भगवान श्री कृष्ण के निवास के ऊपर किया था।
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श्री द्वारकाधीश मंदिर |
श्री द्वारकाधीश मंदिर का वास्तुशिल्प
मंदिर के गर्भगृह में भगवान श्री कृष्ण की काले पत्थर से निर्मित मूर्ति
स्थापित है। यह मूर्ति चतुर्भुज है, मूर्ति की दो भुजाएँ ऊपर उठी है, जिनमें
गदा और चक्र धारण किए गए है। तथा दो भुजाएं नीचे की ओर है, जिनमें एक भुजा में
शंख है तथा दूसरी भुजा में कमल स्थित है। मंदिर में ही श्री कृष्ण के बड़े भाई
बलराम की मूर्ति भी स्थित है। मुख्य मंदिर में कई छोटे मंदिर भी बने हुए है
जिनमे श्री कशी विश्वनाथ मंदिर, राधा कृष्णा मंदिर, श्री बलराम जी का मंदिर,
श्री अम्बा जी मंदिर, माता देवकी का मंदिर, देवी रुक्मणि, देवी सत्यभामा, देवी
जाम्ब्वती के मंदिर, अनिरुद्ध और प्रद्युम्न के मंदिर आदि प्रमुख है। इनके
अलावा श्री द्वारकाधीश मंदिर की चौथी मंजिल पर आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित
शक्ति मंदिर भी स्थित है, यहां पर आम जनता का प्रवेश निषेध है।
द्वारका नगरी
द्वारका नगरी को भगवान श्री कृष्ण ने द्वापर युग में बसाया था, जिस जगह पर द्वारका नगरी स्थित थी, उस जगह का नाम पहले कुशस्थली था। मथुरा छोड़ने के बाद श्री कृष्ण अपने 18 साथियों के साथ कुशस्थली पहुंचे और वहाँ उन्होंने द्वारका नगरी की स्थापना की। द्वारका नगरी पर श्री कृष्ण ने महाभारत युद्ध के बाद 36 वर्षो तक शासन किया। महाभारत के युद्ध के बाद कौरवों की माता गांधारी ने श्री कृष्ण को श्राप दिया की कौरवों की तरह श्री कृष्ण के यदुवंश का भी नाश हो जायेगा, श्री कृष्ण चाहते तो इस इस श्राप को निष्फल कर सकते थे, लेकिन श्री कृष्ण ने मानव अवतार की मर्यादा को ध्यान में रखते हुए शिव भक्त देवी गांधारी के श्राप को स्वीकार कर लिया और उन्हें प्रणाम करके चले गए।
महाभारत युद्ध के बाद 36 वें वर्ष में द्वारका में कई तरह के अपशकुन होने लगे, ऋषियों के एक और श्राप के कारण यदुवंशी आपस में लड़ने लगे और एक दूसरे को मारने लगे, जिससे सम्पूर्ण यदुवंश का विनाश हो गया। यदुवंश का विनाश होने के बाद श्री कृष्ण और बलराम ने देहत्याग कर दिया, जिसके बाद पूरी द्वारका नगरी समुद्र में समा गयी।
श्री द्वारकाधीश मंदिर के त्यौहार
- जन्माष्टमी श्री द्वारकाधीश मंदिर में मनाया जाने वाला सबसे बड़ा त्यौहार है, इस दिन भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था।
- होली का त्यौहार भी इस मंदिर में ब्रज के समान ही बड़ी ही धूम-धाम से मनाया जाता है।
- कार्तिक मास की ग्यारस को तुलसी विवाह का त्यौहार मनाया जाता है, यह त्यौहार चार दिनों तक चलता है, इस त्यौहार में तुलसी का विवाह भगवान विष्णु से किया जाता है।
- माघ महीने में धनुर मास का त्यौहार मनाया जाता है, यह त्यौहार पुरे महीने चलता है।
- 14 जनवरी को मकर सक्रांति का त्यौहार मनाया जाता है, इस दिन श्री द्वारकाधीश के विशेष दर्शन प्राप्त होते है।
- बसंत पंचमी, राम नवमी, अक्षय तृतीया, रक्षा बंधन, दीपावली और अन्य त्यौहार भी इस मंदिर में बहुत धूम धाम से मनाये जाते है।
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