श्री लक्ष्मी नारायणी स्वर्ण मंदिर, वेल्लोर, Sri lakshmi Narayani Golden Temple Vellore in Hindi
श्री लक्ष्मी नारायणी स्वर्ण मंदिर का परिचय
श्री लक्ष्मी नारायणी स्वर्ण मंदिर एक अत्यंत प्रसिद्ध हिन्दू मंदिर है। यह मंदिर भारत के तमिलनाडु राज्य के वेल्लोर शहर में श्रीपुरम नाम के आध्यात्मिक पार्क में स्थित है। इस मंदिर को मलईकोडी के नाम से भी जाना जाता है, यह एक प्रसिद्ध आध्यात्मिक केंद्र है। यह मंदिर देवी महालक्ष्मी को समर्पित है, जो धन की देवी मानी जाती है। इस मंदिर में सभी धर्मों के भक्तों का स्वागत किया जाता है। इस मंदिर को बनाने के लिए 1500 से 1800 किलो शुद्ध स्वर्ण का प्रयोग किया गया है, इस मंदिर में अंदर और बहार दोनों तरफ शुद्ध सोने की परत चढ़ाई गयी है। श्री लक्ष्मी नारायणी स्वर्ण मंदिर दुनिया का सबसे बड़ा स्वर्ण मंदिर माना जाता है, इसके अलावा यह मंदिर दुनिया में सबसे अधिक स्वर्ण का उपयोग करने वाला धार्मिक स्थल के रूप में भी प्रसिद्ध है। यह मंदिर 100 एकड़ के परिसर फैला है। इस मंदिर का निर्माण श्री सक्ति अम्मा ने करवाया है, श्री सक्ति अम्मा को देवी दुर्गा, देवी लक्ष्मी और देवी सरस्वती के अवतार के रूप में जाना जाता है। इस मंदिर का निर्माण कार्य पूरा होने में लगभग 7 वर्ष का समय लगा, जिसके बाद 24 अगस्त 2007 को यह मंदिर भक्तों के दर्शन के लिए खोल दिया गया। इस मंदिर में प्रतिदिन हजारों भक्त देवी श्री लक्ष्मी नारायणी और श्री सक्ति अम्मा के दर्शन करने आते है, विशेष अवसरों और त्योहारों पर इस मंदिर में भक्तों की संख्या लाखों में पहुंच जाती है।
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श्री लक्ष्मी नारायणी स्वर्ण मंदिर, वेल्लोर, तमिलनाडु |
श्री लक्ष्मी नारायणी स्वर्ण मंदिर का वास्तुशिल्प
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श्री लक्ष्मी नारायणी स्वर्ण मंदिर |
सर्वतीर्थम सरोवर के मध्य मुख्य मंदिर स्थित है, मंदिर मूर्तिकला और वास्तु कला का अद्भुत उदाहरण है, मंदिर में सभी तरह की नक्काशियाँ पूरी तरह हाथों से बनाई गयी है। मंदिर के हर विवरण को बड़े ही ध्यान और संयम से बनाया गया है। मंदिर के अंदर और बहार दोनों तरफ शुद्ध सोने की 9 से 15 परतें चढ़ाई गयी है, मंदिर की हर छोटी बड़ी नक्काशी, पिलर, दीवारें, छत और बाकि सभी कुछ के ऊपर शुद्ध सोने की परत चढ़ाई गयी है। स्वर्ण का सभी कार्य बेहतरीन कारीगरों द्वारा हाथों से किया गया है। इस कार्य में 1500 किलो से अधिक शुद्ध स्वर्ण का उपयोग किया गया है। मंदिर के गर्भगृह में देवी श्री लक्ष्मी नारायणी की अद्भुत मूर्ति स्थापित की गयी है, जो देखने में अत्यंत सुन्दर प्रतीत होती है।
श्री सक्ति अम्मा का जीवन परिचय
श्री सक्ति अम्मा का जन्म 3 जनवरी 1976 को हुआ था, जन्म से ही बालक के माथे पर दिव्य किरण का चिन्ह और शरीर पर शंख और चक्र जैसे दिव्य चिन्ह बने हुए थे, जिनके कारण लोगो ने इस बालक को बहुत विशेष माना। बचपन से ही इन्होने आध्यात्मिक जीवन में गहरी रूचि दिखाई और पूजा, भजन जैसे धार्मिक अनुष्ठानों में आनंदपूर्वक भाग लेने लगे। 16 वर्ष की आयु में एक दिन यह बस से स्कुल जा रहे थे, और बस की खिड़की के पास बैठकर आसमान की और देख रहे थे, तभी इनके शरीर से ऊर्जा की एक किरण निकली जिसने आसमान में जाकर देवी श्री लक्ष्मी नारायणी का रूप ले लिया। देवी नारायणी के उस चतुर्भुज रूप के एक हाथ में शंख, दूसरे हाथ में चक्र, तीसरे हाथ में कमल का फूल और चौथा हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में था। कुछ देर बाद देवी अद्रश्य हो गयी और ऊर्जा की किरण वापस इनके शरीर में आ गयी।
8 मई 1992 को श्री सक्ति अम्मा ने देवी श्री लक्ष्मी नारायणी के अवतार और उद्देश्य की घोषणा की। श्री सक्ति अम्मा ने बाल्यकाल से ही कई आश्चर्यचकित कर देने वाले चमत्कार दिखाए। इनके पास सैकड़ों की संख्या में भक्त आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए और अपनी समस्याओं और बीमारियों का उपचार प्राप्त करने के लिए आने लगे। जब भक्तों की मंडली बढ़ने लगी तो समाज की जरूरतों को पूरा करने के लिए और दुनिया में शांति और सद्भाव की स्थापना करने के लिए श्री नारायणी पीडम नाम की संस्था की स्थापना की गयी।
श्री नारायणी पीडम संस्था द्वारा आज अनेक सामाजिक उत्थान के कार्य किये जातें है जैसे :- अन्नदानम नाम के एक मुफ्त भोजन वितरण कार्यक्रम के अंतर्गत 6000 से अधिक लोगों को प्रतिदिन शानदार और पौष्टिक भोजन परोसा जाता है, स्वर्ण मंदिर में प्रतिदिन 10000 लोगों को प्रसाद वितरित किया जाता है, गरीबी की रेखा से निचे के किसानो को पशु दान किये जाते है, गरीबों को कपडे दान किये जाते है, प्रकृति का संरक्षण करने के लिए वेल्लोर और तिरुवन्नमलाई के गावों में 10 लाख से अधिक पौधे लगाए गए है। इस संस्था के द्वारा शुरू की गयी डेयरी परियोजना के अंतर्गत राजस्व उत्पन्न करने के साथ साथ भारतीय गायों की दुर्लभ नस्लों का संरक्षण भी किया जाता है, इनके अलावा कई अन्य सामाजिक कार्य भी इस संस्था के द्वारा किये जाते है।
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