श्री काशी विश्वनाथ मंदिर, वाराणसी, उत्तरप्रदेश - GYAN OR JANKARI

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शनिवार, 16 जनवरी 2021

श्री काशी विश्वनाथ मंदिर, वाराणसी, उत्तरप्रदेश

 श्री काशी विश्वनाथ मंदिर, वाराणसी, उत्तरप्रदेश


श्री काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की महिमा 

श्री काशी विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक प्रसिद्ध मंदिर है, यह मंदिर भगवान शिव के परम पवित्र द्वादश ज्योतिर्लिंग मंदिरों में से एक है। यह मंदिर उत्तरप्रदेश राज्य में धरती के सबसे प्राचीन नगर वाराणसी में स्थित है, वाराणसी नगरी को काशी और बनारस भी कहा जाता है। पुराणों के अनुसार श्री काशी विश्वनाथ मंदिर सृष्टि के आरम्भ से ही काशी में स्थित है। शास्त्रों में श्री काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग और काशी नगरी की अपार महिमा का वर्णन किया गया है, जिसके अनुसार काशी नगरी में प्राण त्यागने मात्र से किसी पापी व्यक्ति को भी मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है, इसलिए यदि श्री गंगाजी में स्नान करने के बाद श्री काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन किये जाये और सच्चे मन से भगवान शिव की आराधना की जाय तो इससे अर्जित पुण्य की कहीं कोई तुलना ही नहीं है। 

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श्री काशी विश्वनाथ मंदिर

शास्त्रों के अनुसार काशी नगरी पर भगवान शिव की असीम कृपा है, इस नगरी का प्रलयकाल में भी लोप नहीं होता, प्रलयकाल के दौरान भगवान शिव इस नगरी को अपने त्रिशूल धारण कर लेते है, और सृस्टि के निर्माण काल के समय इसे पुनः स्थापित कर देते है। स्कंदपुराण में काशी की महिमा का गुणगान करते हुए लिखा गया है "जो भूतल पर होने पर भी पृथ्वी से संबंध नहीं है, जो जगत की सीमाओं से बंधी होने पर भी सभी के बंधन काटने (मोक्ष प्रदान करने वाली) वाली है, जो नित्य जगतपावनी गंगा के तट पर स्थित है और देवताओं द्वारा सुसेवित है, जो त्रिपुरारी भगवान विश्वनाथ की राजधानी है, वह काशी नगरी सम्पूर्ण जगत की रक्षा करे "


श्री काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की कथा 

सृस्टि के निर्माण के बाद भगवान विष्णु ने तपस्या करने के लिए भगवान शिव से एक उपयुक्त स्थान मांगा। भगवान शिव ने अपनी शक्ति से अत्यंत तेजोमय पंचकोषीय नगरी का निर्माण किया। उस नगरी में भगवान विष्णु ने बहुत लम्बे समय तक तपस्या की। भगवान विष्णु की तपस्या के कारण वहाँ पर बहुत सी नदियाँ उत्पन्न हो गयी, और उस नगरी का प्राकृतिक सौन्दर्य कई गुना बढ़ गया। तपस्या पूरी होने के बाद भगवान विष्णु ने जब उस अद्भुत नगरी का सौन्दर्य देखा तो वह आनंद और ख़ुशी में झुम उठे और उनके कान की मणि (मणिकर्णिका) उस धरती पर गिर गयी। जिस धरती पर भगवान विष्णु की वह मणिकर्णिका गिरी भगवान शिव ने उस पूरी नगरी को अपने त्रिशूल पर धारण कर लिया, और उस पंचकोषी नगरी को सभी 14 लोकों से अलग रखा और उसे पृथ्वी पर स्थापित कर दिया। 

भगवान शिव को वह नगरी बहुत पसंद आयी, और उन्होंने कहा यह पंचकोषीय नगरी काशी के नाम से प्रसिद्ध होगी, यह नगरी अविनाशी है, सृस्टि के अंत के बाद भी इस नगरी का अंत नहीं होगा। इस नगरी में नारायण ने तपस्या करके सृस्टि को प्रकाशित किया है, इसलिए यह नगरी मुझे अत्यंत प्रिय है और मैं इसे कभी भी नस्ट नहीं होने दूंगा। जब इस सृस्टि में प्रलय आएगा तब में इस नगरी को पुनः अपने त्रिशूल पर धारण करूँगा और नविन सृस्टि में पुनः स्थापित कर दूंगा। यह कहकर भगवान शिव स्वयं उस नगरी में ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गए और हमेशा उस नगरी में निवास करने लगे। भगवान शिव का यह ज्योतिर्लिंग विश्वेस्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रसिद्ध हुआ, इस ज्योतिर्लिंग को काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है। 


श्री काशी विश्वनाथ मंदिर का वास्तुशिल्प 

श्री कशी विश्वनाथ मंदिर गंगा नदी के तट पर काशी की संकरी गलियों के मध्य स्थित है। मंदिर का शिखर लगभग 15.5 मीटर ऊंचा है। मंदिर के शिखर को महाराजा रणजीत सिंह ने एक टन से अधिक शुद्ध सोने से मढ़वाया था। मंदिर के प्रांगण में कई अन्य मंदिर भी बने हुए है। मुख्य मंदिर की उत्तर दिशा में एक कुआँ स्थित है, जिसका नाम ज्ञानवापी कुआँ है। मंदिर के गर्भगृह में पवित्र शिवलिंग स्थापित है जो काले पत्थर से बना है। शिवलिंग चांदी की एक चौकोर वेदी के मध्य स्थापित है। मंदिर का गर्भगृह बहुत बड़ा नहीं है, इसमें एक बार में केवल कुछ ही लोग भगवान शिव का दर्शन कर सकते है।