श्री त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग का महत्त्व, पौराणिक कथा और अन्य जानकारी - GYAN OR JANKARI

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बुधवार, 20 जनवरी 2021

श्री त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग का महत्त्व, पौराणिक कथा और अन्य जानकारी

श्री त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग का महत्त्व, पौराणिक कथा और अन्य जानकारी 


श्री त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग का महत्त्व 

श्री त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग भगवान शिव को समर्पित एक प्रसिद्ध हिन्दू मंदिर है, यह मंदिर महाराष्ट्र राज्य के नासिक जिले में गोदावरी नदी के उदगम स्थान के निकट स्थित है। गौतम ऋषि की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान् शिव ने गोदावरी नदी के उद्गम स्थल के निकट ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान होना स्वीकार किया था। श्री त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की गिनती भगवान शिव के परम पवित्र द्वादश ज्योतिर्लिंग में की जाती है। श्री त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में शिवलिंग के स्थान पर एक छोटे गड्ढे में तीन पिंडियां स्थापित हैं, इन तीन पिण्डियों को ब्रह्मा, विष्णु महेश का प्रतिक माना जाता है। तीनों पिण्डियों के ऊपर हीरों और मणियों से जड़ा हुआ सोने का मुकुट पहनाया जाता है, यह मुकुट पांडवों के समय का बताया जाता है। श्री त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग अन्य ज्योतिर्लिंगों की तुलना में अत्यंत विशेष है, क्योकि अन्य ज्योतिर्लिंगों में केवल भगवान शिव की ही पूजा की जाती और यहाँ भगवान शिव के साथ भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा की भी पूजा की जाती है।

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श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग और श्री ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग की तरह श्री त्र्यंबकेश्वर महादेव भी नगर के राजा माने जातें है। इसलिए हर सोमवार के दिन श्री त्र्यंबकेश्वर महादेव अपना प्रजा का हाल जानने के लिए नगर भ्रमण पर निकलते है। इस भ्रमण के दौरान त्र्यंबकेश्वर महादेव के सोने से बने हुए पंचमुखी मुखौटे को पालकी में विराजमान करके नगर में घुमाया जाता है, फिर कुशावर्त तीर्थ स्थित घाट पर स्नान कराया जाता है। इसके बाद मुखौटे को वापस मंदिर में लाकर हीरों से जड़ित स्वर्ण मुकुट पहनाया जाता है। इस पूरी यात्रा में भक्त भगवान शिव के जयकारे लगाते हुए चलते है। यह पूरा द्रश्य त्र्यंबकेश्वर महाराज के राज्याभिषेक के समान प्रतीत होता है, जिसे देखना एक बेहद अलौकिक अनुभव होता है।  


श्री त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा 

शिवपुराण की कथा के अनुसार प्राचीन समय में गौतम नाम के महामुनी थे, जिनकी पत्नी का नाम अहिल्या था। उस समय बहुत काल तक वर्षा नहीं होने के कारण भयंकर सूखा पड़ा था। तब गौतम ऋषि ने वर्षा की प्राप्ति के लिए वरुण देव की आराधना करके उन्हें प्रसन्न किया। वरुण देव ने गौतम ऋषि से कहा आप एक तालाब खोदिये, मैं उस तालाब को जल से भर दूंगा फिर उस तालाब का जल कभी समाप्त नहीं होगा और इससे तुम्हारा नाम संसार में प्रसिद्ध हो जायेगा। 


वरुण देव के आज्ञा मानते हुए गौतम ऋषि ने एक छोटा तालाब खोद दिया, जिसके बाद वरुण देव ने उसे जल से भर दिया और गौतम ऋषि से बोले, हे महामुनि इस स्थान पर किये गए सभी कर्म, दान, हवन, देवपूजन,तपस्या, पितृ श्राद्ध सभी सफल होंगे, यह कहकर वरुण देव अंतर्ध्यान हो गए। जल का प्रबंध हो जाने के के बाद गौतम ऋषि के आश्रम के आसपास का सारा क्षेत्र हरा-भरा हो गया और वहां आसपास के सभी लोग और पशु-पक्षी जल पिने के लिए आने लगे। जिसके कारण चारों तरफ गौतम ऋषि की कीर्ति फैलने लगी। 


कुछ ब्राह्मण गौतम ऋषि की कीर्ति से जलने लगे और उन्हें उस स्थान से भगाने का उपाय सोचने लगे। गौतम ऋषि को सबक सीखने के लिए उन ब्राह्मणों ने भगवान गणेश की आराधना शुरू कर दी। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर गणेश जी प्रकट हुए और उनसे इच्छित वरदान मांगने को कहा, ब्राह्मणों ने कहा हे गणपति हम चाहतें है की गौतम ऋषि इस स्थान को छोड़कर किसी दूसरे स्थान पर चले जाएँ। तब भगवन गणेश ने कहा गौतम ऋषि ने कोई अपराध नहीं किया है, इसलिए आप कुछ और वरदान मांग लो, परन्तु जब ब्राह्मण नहीं माने तो भगवान गणेश उन्हें इच्छित वरदान देकर अंतर्ध्यान हो गए। 


अपने वरदान को पूरा करने के लिए भगवान गणेश ने एक दुर्बल गाय का रूप बनाया और गौतम ऋषि के खेत में चरने लगे। जब ऋषि ने देखा की गाय उनका खेत नष्ट कर रही है तो वे तिनके से उसे दूर हटाने लगे।  तिनके का स्पर्श होते ही गाय मर गयी। उसी समय सभी लोग वहाँ पर इखट्टे हो गए और उन्होंने गौतम ऋषि पर गौ हत्या का दोष लगा दिया और उन्हें उस स्थान को छोड़कर कहीं और चले जाने को कहा। गौतम ऋषि ने पूछा मेरे द्वारा हुए इस गौ हत्या के पाप का क्या प्रयश्चित होगा। ब्राह्मणों ने कहा आप गंगाजी का अवतरण कराएं और उनमें स्नान करें तभी आप गौ हत्या के पाप से मुक्त होंगे। 


इसके बाद गौतम ऋषि और उनकी पत्नी अहिल्या ने कई वर्षो तक भगवान शिव की कठोर तपस्या की, उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हो गए और उनसे इच्छित वरदान मांगने को कहा। गौतम ऋषि ने कहा हे प्रभु आप हमें गौ हत्या के पाप से मुक्त कर दीजिये। तब भगवान शिव बोले आप ने कोई अपराध नहीं किया है, आप पर गौ हत्या का आरोप छल से लगाया गया था, आप निर्दोष है। यह सुनकर गौतम ऋषि और उनकी पत्नी अहिल्या के सभी दुःख दूर हो गए फिर उन्होंने भगवान शिव से कहा हे प्रभु कृपा करके गंगाजी को इस स्थान पर प्रकट करें जिससे सभी प्राणियों का कल्याण हो सके। 


तब भगवान शिव के आदेश पर गंगाजी उस स्थान पर प्रकट हुई। भगवान शिव ने देवी गंगा से कहा हे गंगे आप पापों का नाश करने वाली हैं। इसलिए लोक कल्याण के लिए यहीं पृथ्वी पर विराजें आपको इस मन्वन्तर की अट्ठाईसवीं चतुर्युगी तक यहीं पृथ्वी लोक पर निवास करना होगा और भक्ति भाव से अपने जल में स्नान करने वाले श्रद्धालुओं के पापों को नस्ट करना होगा। यह सुनकर गंगाजी बोली आपकी आज्ञा मेरे लिए शिरोधार्य है, परन्तु मेरी आपसे यह प्रार्थना है की आप माता पार्वती के साथ मेरे निकट ही निवास करें ताकि मैं सदा की भांति आप के पास रहूं। तब भगवान शिव गंगाजी से बोले में तुम्हारी मनोकामना अवश्य पूरी करूँगा यह कहकर भगवान शिव उस स्थान पर श्री त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गए।  गंगाजी उस स्थान पर गौतम ऋषि के नाम से प्रसिद्ध होकर गौतमी गंगा कहलाई, जिन्हें गोदावरी भी कहा जाता है। 


 श्री त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर का वास्तुशिल्प

श्री त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर जीर्णोद्धार 1755 में नाना साहब पेशवा ने करवाया था, यह जीर्णोद्धार का कार्य 31 साल बाद 1786 में पूरा हुआ था, इस कार्य में लगभग 16 लाख रूपए का खर्च हुआ जो उस समय बहुत बड़ी धनराशी मानी जाती थी।   

श्री त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर ब्रह्मगिरि, नीलगिरि और कलगिरि नाम की तीन पहाड़ियों के मध्य स्थित है। मंदिर से कुछ दुरी पर गोदावरी नदी का उद्गम स्थान स्थित है तथा मंदिर के निकट ही गौतम तालाब भी स्थित है। यह मंदिर नागरा वास्तुशिल्प शैली का अध्बुध उदाहरण है, पुरे मंदिर का निर्माण  काले पत्थरों से किया गया है। यह मंदिर एक विशाल चौकोर परिसर के मध्य स्थित  है। मंदिर परिसर के भीतर एक विशाल चौकोर कुंड स्थित है, जिसका आकर 92 फुट गुणा 98 फुट है, इस कुंड को अमृतकुंड कहा जाता है।  मंदिर के पूर्व में एक विशाल चौकोर मंडप है, जिसके चारों और दरवाजे है, सभी द्वारों पर द्वार मंडप बने हुए है। मंदिर का गर्भगृह अंदर से चौकोर है, जिसके मध्य में पवित्र शिवलिंग स्थापित है। मंदिर के गर्भगृह के ऊपर मंदिर का शिखर है, जिसके ऊपर स्वर्ण कलश स्थापित किया गया है। पुरे मंदिर में मूर्तिकला का अध्बुध कार्य देखने को मिलता है, पुरे मंदिर में सुन्दर पुष्प, देवताओं, यक्षों, मनुष्यों, और जानवरों की सुन्दर कलाकृतियां पत्थरों में उकेरी गयी है जो देखने में जीवंत और अतिसुन्दर प्रतीत होती है।