कबीर दास जी का भंडारा हिंदी कहानी Kabir Das Ji Ka Bhandara Hindi Kahani - GYAN OR JANKARI

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बुधवार, 13 अप्रैल 2022

कबीर दास जी का भंडारा हिंदी कहानी Kabir Das Ji Ka Bhandara Hindi Kahani

कबीर दास जी का भंडारा हिंदी कहानी Kabir Das Ji Ka Bhandara Hindi Kahani

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कबीर दास जी जब सिकंदर लोधी को परास्त करके काशी लौटे, तो पुरे काशी में कबीर दस की जय-जयकार हो गयी। कबीर दस के सत्संग में हजारों लोगो की भीड़ उमड़ने लगी, लोगों की कर्मकांड में आस्था कम हो गयी और अधिकतर लोग कबीरदास जी की भाँति राम नाम का जाप करने लगे। कबीर दस जी की प्रतिष्ठा बढ़ने से काशी के ब्राह्मणों को लगने लगा की कबीर दास जी के कारण अब उन्हें कोई नहीं पूछता, लोगों की कर्मकांडो में रूचि भी कम हो गयी है, इसलिए अब ब्राह्मणो की आय भी कम होने लगी थी। कुछ पाखंडी ब्राह्मणों ने सोचा कैसे भी करके यदि कबीरदास जो संतो का श्राप दिला दिया जाये तो लोगों पर उनका प्रभाव भी समाप्त हो जायेगा और ब्राह्मणों को पुनः पहले जैसी आय होना प्रारम्भ हो जाएगी। 


ब्राह्मणो ने सोचा, सभी संतों को कबीरदास जी के नाम से भंडारे का न्यौता दे देते है और जब कबीरदास जी भंडारे की व्यवस्था नहीं कर पायेंगें, तो सभी संत प्रसाद न मिलने के कारण उन्हें श्राप देकर जायेंगें, जिससे कबीरदास जी की कीर्ति नस्ट हो जाएगी।अब कुछ पाखंडी ब्राह्मणों ने कबीरदास जी को संतो से श्राप दिलाने के लिए काशी और काशी से आस-पास के सैंकड़ों गाँवो के हजारों संतो को कबीरदास जी के नाम से भंडारे का निमंत्रण दे दिया और उनसे कहा कबीरदास जी दिल्ली के सुल्तान को परास्त करके आएं है, इसलिए उन्होंने एक अति विशाल भंडारे की व्यवस्था करि है, इसलिए सभी संत जन पधारे और भंडारे का प्रसाद ग्रहण करें।  कबीर दास जी का पुरे भारत में बहुत अच्छा प्रभाव था, उनके नाम और उनकी महिमा से सभी लोग भलीभांति परिचित थे, जब कबीर दास जी जैसे विलक्षण संत ने भंडारे का आयोजन किया है, तो भंडारे में पधारने के लिए सभी संतों ने सहर्ष स्वीकृति दे दी। 

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ब्राह्मणों ने कबीरदास जी के नाम से संतो को भंडारे का न्यौता तो दे दिया परन्तु कबीरदास जी को इस विषय में कुछ नहीं बताया। भंडारे वाले दिन कबीर दास जी तो अपने घर में बैठकर कुछ भक्तों के साथ आनंदपूर्वक सत्संग कर रहे थे, तभी उन्होंने देखा धीरे-धीरे दूर-दूर से साधु संतो के जत्थे के जत्थे आने लगे हैं। सभी साधु संत कीर्तन करते हुए राम नाम जपते हुए कबीर दास जी के घर के तरफ बढे चले आ रहे थे। कबीरदास जी के घर पर संतों की बड़ी भारी भीड़ जुट गयी। कबीरदास जी ने सभी संतो को प्रणाम किया और कहा आज संत भगवान के दर्शन करके जीवन सफल हो गया, सभी संत मुझ गरीब पर कृपा करने कैसे पधारे। संतो ने कहा कबीर जी आप भी अच्छा मजाक कर रहें है, आज आपके यहाँ भंडारा है ना, आप ही ने तो हम सभी को भंडारे में प्रसाद ग्रहण करने के लिए बुलाया है। वैसे तो हम अपना कीर्तन छोड़कर कहीं नहीं जाते, परन्तु जब आप जैसे संत का न्योता आया तो हम स्वयं को रोक नहीं सके, और हम चले आये प्रसाद पाने। कबीरदास जी ने मन में सोचा कैसा प्रसाद कैसा भंडारा। फिर कबीरदास जी ने संतो को बैठने लिए कहा, कबीरदास जी ने घर से बहार निकलकर अन्य संतों से पूछा उन्होंने भी भंडारे का निमंत्रण प्राप्त होने की बात कही। 


अब कबीरदास जी को विश्वास हो गया की जरूर किसी शरारत की है, और उनके नाम से संतो को भंडारे का निमंत्रण दिया है। कुछ संतो ने कबीर दास जी से पूछा, की यदि रसोई तैयार है तो भगवान को भोग लगाकर पंगत आरम्भ कीजिये। कबीरदास जी बोले बस पूरी तैयारी है, भोग लगने की देर है फिर पंगत शुरू करते है, तब तक आप बैठिये। संत बोले ठीक है तब तक हम कीर्तन कर लेते है, साधु संत कबीरदास जी के घर में बैठकर कीर्तन करने लगे। अब कबीरदास जी ने सोचा की अब क्या किया जाय। कबीरदास जी को तो एक ही तरीका मालूम था, वे तो किसी भी आपदा में सब कुछ राम पर छोड़ कर जंगल में भजन करने चले जाते थे। इस बार भी कबीरदास जी संतो को बैठाकर जंगल की तरफ जाने के लिए निकल रहे थे, तभी कुछ संतो ने उन्हें रोक लिया और पूछा कबीरदास जी आप कहाँ जा रहें है। कबीरदास जी बोले भंडारे में रायते के लिए दही मंगवाया था परन्तु अभी तक ग्वाला दही लेकर नहीं आया। बस अभी ग्वाले से दही का पता करके आता हूँ। संत बोले ठीक है परन्तु जल्दी आइयेगा। कबीरदास जी बोले बस यहीं पास ही ग्वाले का घर है, मैं दही लेकर अभी आता हूँ। यह कहकर कबीरदास जी अपने घर निकल गए और गंगा के तट पर जाकर झाड़ियों मे छिपकर बैठ गए और राम नाम जपने लगे। 


साधु संतों को बैठे हुए बहुत देर हो गयी, वे सोचने लगे कबीरदास जी को दही लाने में इतनी देर कैसे हो गयी और कहीं पर रसोई भी बनती नहीं दिख रही। संतों के मन में कुछ विचार आने लगे, कुछ संत कबीरदास जी को इधर-उधर ढूंढने लगे, कुछ संत रसोई खोजने लगे परंतु किसी को कुछ नहीं दिखाई दिया। अब साकेत धाम मे भगवान श्री राम कबीरदास जी के लिए चिंतित हो गए।  भगवान ने सोच यदि कबीर दास जी की मदद नहीं की गई तो उनकी बहुत बदनामी हो जाएगी, इसलिए भगवान श्री राम ने पुनः कबीरदास जी का रूप धारण कर लिया, भगवान श्री राम के साथ श्री हनुमान जी और उनकी वानर सेना भी प्रकट हो गयी, सभी ने कबीरदास जी के सेवकों का रूप धर लिया। अब कबीरदास जी के रूप में भगवान श्री राम दूर से ही संतों को आते हुए दिखाई दिए, उनके साथ सेवको का रूप धर के हनुमान जी और उनकी वानर सेना भी आ रही थी, सभी ने दही के बड़े-बड़े पात्र उठा रखे थे। कबीरदास जी को आता देखकर संत जन बोले अरे आपने बड़ी देर कर दी दही लाने में, हम तो बिना रायते के ही प्रसाद पा लेते। कबीर जी बोले नहीं अब दही का प्रबंध हो गया है अब कोई देर नहीं है। कबीर दास रूपी भगवान श्री राम ने अपनी माया से तुरंत एक विशाल और सुन्दर रसोई प्रकट कर दी। 


सभी संतो को आदर पूर्वक पंगत में बैठाया गया। जब पत्तलो में भोजन परोसा जाने लगा तो संतो ने देखा पत्तलों में कई तरह के साग पूड़ी, कचौड़ी, रायता, कई तरह के मिष्ठान्न, और इतने विशाल लड्डू जो संतो ने जीवन में पहली बार देखे थे, ऐसे भव्य भंडारे की रसोई और इतने सारे पकवान देखकर सभी संत आश्चर्यचकित रह गए, ऐसा भव्य भंडारा उन्होंने अपने जीवन में पहले कभी नहीं देखा था। सभी संतो ने प्रभु श्री राम और कबीरदास जी के नाम का जयकारा लगाकर भोजन प्रारम्भ किया। इतना स्वादिष्ट और दिव्य प्रसाद संतो ने पहले कभी ग्रहण नहीं किया था, ऐसा लग रहा था जैसे इस प्रसाद को पाकर आत्मा तक तृप्त हो गई हो। 


इस भंडारे मे दूर-दूर से हजारों संत पधारे थे,  ऐसा विशाल भंडारा काशी नगरी के लोगों ने भी पहले कभी नहीं देखा था, भोजन ग्रहण करने वालों की पंगत इतनी लंबी हो गई थी की काशी की सड़कों से होते हुए गंगा तट तक पहुँच गई थी । सभी संत प्रसाद ग्रहण करने से पहले भगवान श्री राम ओर कबीरदास जी का जयकारा लगा रहे थे । कबीरदास जी वहीं गंगा किनारे झाड़ियों मे छिपकर राम नाम का जाप कर रहे थे , जब उन्होंने स्वयं के नाम का जयकारा सुना तो उन्होंने सोचा, लगता है प्रभु श्री राम ने फिर से कोई लीला कर दी है । उन्होंने झाड़ियों से बाहर झाँककर देखा, वे देखते है गंगा के किनारे तक संतों की पंगत बैठी है, सभी बड़े प्रेम से प्रसाद पा रहे है, और साथ मे प्रभु श्री राम तथा कबीरदास जी के नाम का जयकारा लगा रहें है। कबीर दास जी स्वयं को छिपाते हुए झाड़ियों से बाहर निकले, तथा अपना चेहरा छिपाते हुए अपने घर की तरफ बढ़े । मार्ग मे उन्होंने देखा की हजारों संत लंबी-लंबी कतारों मे बैठ कर भंडारे का प्रसाद ग्रहण कर रहे है, और चारों तरफ कबीरदास जी की जय जयकार हो रही है। 


जब कबीरदास जी अपने घर के निकट पहुचे तो उन्होंने दूर से देखा की स्वयं भगवान श्री राम कबीरदास जी का ही रूप लेकर भंडारे की व्यवस्था देख रहें है। अपने प्रभु को स्वयं अपने ही स्वरूप मे देखकर कबीरदास जी भाव विभोर हो गए, उनकी आँखों से अश्रु निकल आए। अब कबीरदास जी ने सोचा जब यहाँ तक आ ही गया हूँ, तो अपने प्रभु के हाथों से प्रसाद भी ग्रहण कर लूँ । यह सोचकर कबीरदास जी भी अपना चेहरा छिपाते हुए एक कोने मे पंगत मे प्रसाद ग्रहण करने के लिए बैठ गए। कबीर दास जी को भी भोजन परोसा जाने लगा, इस बार कबीर रूपी प्रभु श्री राम संतों को भोजन परोसते परोसते कबीरदास जी के पास पहुचे। कबीर दास जी यह सब देख रहे थे, कबीरदास जी ने अपने चेहरे को और ज्यादा छिपा लिया की कहीं प्रभु श्री राम उन्हे पहचान ना लें संकोच होगा। लेकिन प्रभु श्री राम तो अंतर्यामी है वे तो सब कुछ जानते है । भगवान श्री राम ने कबीरदास जी के पास आकार धीरे से उनके कान मे बोले, कबीर जी जब साधु-संत आए तब तो आप मैदान छोड़कर भाग गए, लेकिन अब प्रसाद होने लगा तो आप सबसे पहले आकर बैठ गए। अरे जो जजमान होता है जो भंडारा करवाता है, उसे सबसे बाद मे प्रसाद ग्रहण करना चाहिए । आप तो पहले ही आकर बैठ गए अभी तो बहुत से साधु संत आएंगें । 


कबीरदास जी ने लज्जा पूर्वक भगवान श्री राम का मुख देखा और हाथ जोड़कर बोले प्रभु मैं कुछ कर रहा हूँ या कुछ करवा रहा हूँ तब तो मैं बाद मे बैठूँ । लेकिन यह दास कबीर जजमान नहीं है, जजमान तो कबीर के प्रभु श्री रघुवीर हैं, इसलिए आप बाद मे प्रसाद लीजिएगा, मैं तो अभी यहीं बैठ प्रसाद ग्रहण करूंगा। भक्त और भगवान के बीच बातचीत हो गई किसी को कुछ ज्ञात नहीं हुआ । तब प्रभु श्री राम ने कबीर दास जी को प्रसाद परोसा और कबीरदास जी ने बड़े भाव से प्रसाद ग्रहण किया। वह विशाल भंडारा पूरे दिन चलता रहा सभी साधु संतों ने और काशी नगरी के सभी लोगों ने भंडारे मे प्रसाद ग्रहण किया । ऐसा अधबुध भंडारा पहले कभी किसी ने नहीं देखा था । सभी संत भंडारे मे प्रसाद ग्रहण करके बहुत प्रसन्न होकर लौटे और उन्होंने कबीरदास जो को खूब आशीर्वाद दिए । इस प्रकार प्रभु श्री राम ने एक बार फिर अपने भक्त की लाज रख ली, जिससे चारों दिशाओ मे एक बार फिर से कबीरदास जी की जय जयकार हो गई ।  


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